भारत का किसान
मैं भारत का किसान हूँ...
ना किसी अख़बार की हेडलाइन में आता हूँ,
ना किसी मंत्री के भाषण में टिक पाता हूँ।
मैं सुबह सूरज से पहले उठता हूँ,
और दिन भर मिट्टी से बातें करता हूँ।
कभी बरसात की मार झेलता हूँ,
तो कभी सूखे से समझौता करता हूँ।
मेरे पास ना AC है, ना आराम,
फिर भी हर मौसम में उगाता हूँ हिंदुस्तान का काम।
मेरी फसलें दूसरों की थाली सजाती हैं,
पर मेरी थाली में कई बार भूख ही बचती है।
कर्ज़ के बोझ से दबा रहता हूँ,
और उम्मीदों की रस्सी पर रोज़ झूलता हूँ।
सरकारी वादे तो बहुत मिलते हैं,
पर मंडी में दाम नहीं, बस दर्द मिलते हैं।
फिर भी मैं हारता नहीं,
क्योंकि मेरे हाथों में हल है, और दिल में बल है।
गाँव की गलियों में मेरा ख्वाब पलता है,
और मेरा बच्चा जब “अफसर” बनने का सपना देखता है,
तो थकान भी मुझे हौसला दे जाती है।
मैं भारत का किसान हूँ…
मिट्टी से बना, पर पत्थर से भी मज़बूत।
ना रोया, ना रुका —
क्योंकि मेरे बिना ये देश भूखा है।
"मैं भारत का किसान हूँ..." खेत की सुबह, धुंध में किसान हल लेकर चलता हुआ
"सूरज से पहले उठता हूँ..." अंधेरे में लालटेन जलाते किसान की छवि
"फसलें थाली सजाती हैं..." अनाज से भरा गोदाम, फिर खाली थाली
"कर्ज़ के बोझ..." बैंक के बाहर किसान, माथे पर चिंता
"गाँव की गलियों..." बच्चा पढ़ता हुआ, माँ खेत में काम करती हुई
"ना रोया, ना रुका..." किसान की आँखों में दृढ़ता, खेत में सूरज डूबता|
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