भारत की शिक्षा प्रणाली का इतिहास | गुरुकुल से डिजिटल क्लास तक

 भारत की शिक्षा प्रणाली का इतिहास : गुरुकुल से डिजिटल क्लास तक का सफर

भारत हमेशा से ज्ञान और शिक्षा की भूमि रहा है। यहाँ शिक्षा केवल रोज़गार पाने का साधन नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला और समाज निर्माण का आधार मानी जाती थी।

अगर हम भारत की शिक्षा व्यवस्था के इतिहास पर नज़र डालें, तो यह हमें गुरुकुल परंपरा से लेकर आज के डिजिटल युग तक एक लंबी और रोचक यात्रा पर ले जाता है।

(Morden indian school)

1. वैदिक काल : शिक्षा का मूल स्वरूप

भारत में शिक्षा की शुरुआत वैदिक काल से मानी जाती है। उस समय शिक्षा का केंद्र गुरुकुल हुआ करते थे।

• विद्यार्थी गुरु के आश्रम में रहकर शिक्षा प्राप्त करते।

• शिक्षा के विषय थे – वेद, उपनिषद, गणित, खगोलशास्त्र, आयुर्वेद, दर्शन और युद्धकला।

• विद्यार्थी सुबह से रात तक अनुशासित जीवन जीते और गुरु की सेवा को शिक्षा का हिस्सा मानते।

 • मुख्य उद्देश्य था – चरित्र निर्माण, आत्मज्ञान और समाज सेवा।

👉 उस समय शिक्षा का स्तर इतना ऊँचा था कि भारत को विश्वगुरु कहा जाता था।

(प्राचीन भारतीय गुरुकुल)

2. उत्तरवैदिक और बौद्ध काल : विश्वविद्यालयों का स्वर्ण युग

बौद्ध काल आते-आते भारत ने शिक्षा के क्षेत्र में एक नया अध्याय लिखा।

• इस समय भारत में नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला, वल्लभी जैसे विश्वविद्यालय स्थापित हुए।

• यहाँ हजारों विद्यार्थी दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से पढ़ने आते थे।

• शिक्षा के विषयों में चिकित्सा, गणित, व्याकरण, तर्कशास्त्र, राजनीति, कला और दर्शन शामिल थे।

• नालंदा विश्वविद्यालय में कभी 10,000 से अधिक विद्यार्थी और 1,500 से अधिक आचार्य पढ़ाते थे।

👉 यह काल भारत की शिक्षा व्यवस्था का स्वर्णिम युग माना जाता है।

3. मध्यकाल : नई भाषाएँ और मदरसे

मध्यकाल में जब मुस्लिम शासन आया, तब शिक्षा प्रणाली में बदलाव हुआ। मकतब और मदरसे बने, जहाँ मुख्य रूप से कुरान, हदीस, अरबी, फारसी, गणित और साहित्य पढ़ाया जाता था।

• प्रशासनिक कार्यों और न्याय-व्यवस्था के लिए शिक्षित लोगों की ज़रूरत थी, इसलिए शिक्षा का ज़ोर उसी पर रहा।

• गाँवों में गुरुकुल और पाठीशालाएँ भी चलती रहीं, जहाँ परंपरागत संस्कृत शिक्षा मिलती थी।

(मध्यकालीन भारत के स्कूल -प्रतीकात्मक फोटो)

👉 इस काल में शिक्षा धार्मिक और प्रशासनिक ज़रूरतों पर आधारित हो गई।

4. अंग्रेज़ी शासन : आधुनिक शिक्षा की शुरुआत

ब्रिटिश शासन में भारत की शिक्षा प्रणाली ने एक बड़ा मोड़ लिया। शुरू में अंग्रेज़ शिक्षा को बढ़ावा देने के पक्ष में नहीं थे। लेकिन 1813 के चार्टर एक्ट के बाद शिक्षा पर 1 लाख रुपये वार्षिक खर्च तय हुआ।मैकॉले का मिनट (1835) सबसे महत्वपूर्ण साबित हुआ। इसके बाद अंग्रेज़ी भाषा को प्राथमिकता दी गई।1854 का वुड्स डिस्पैच भारतीय शिक्षा का "मैग्नाकार्टा" कहलाया। इसमें तीन स्तर की शिक्षा (प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा) की सिफारिश हुई।1857 में कलकत्ता, मद्रास और बॉम्बे विश्वविद्यालय खोले गए।

👉 अंग्रेज़ी शिक्षा से एक नया नौकरीपेशा वर्ग तैयार हुआ। हालाँकि अंग्रेज़ों का उद्देश्य प्रशासनिक कर्मचारियों को तैयार करना था, लेकिन इसी शिक्षा ने भारतीयों को स्वतंत्रता आंदोलन की राह दिखाई।

5. स्वतंत्र भारत : शिक्षा का लोकतंत्रीकरण

• 1947 में आज़ादी के बाद भारत ने शिक्षा को जन-जन तक पहुँचाने का संकल्प लिया।

• 1948 में राधाकृष्णन आयोग ने विश्वविद्यालय सुधार की सिफारिश की।

• 1964 के कोठारी आयोग ने 10+2+3 प्रणाली की सिफारिश की और शिक्षा को विकास का आधार बताया।

• 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने सभी के लिए प्राथमिक शिक्षा पर ज़ोर दिया।

• 2009 में आया शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE Act) जिसने 6 से 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए शिक्षा को मौलिक अधिकार बना दिया।

(प्राथमिक विद्यालय)

• 2020 में नई शिक्षा नीति (NEP 2020) आई, जिसने शिक्षा को और आधुनिक और कौशल-आधारित बनाने का लक्ष्य रखा। इसमें 5+3+3+4 का ढांचा और मातृभाषा पर विशेष ध्यान दिया गया।

6. आज की शिक्षा : डिजिटल क्रांति

• 21वीं सदी में भारत की शिक्षा प्रणाली एक नए दौर में पहुँच चुकी है।

•अब शिक्षा केवल किताबों और कक्षाओं तक सीमित नहीं रही।

• ऑनलाइन लर्निंग, स्मार्ट क्लास, मोबाइल ऐप और डिजिटल प्लेटफॉर्म ने सीखने को आसान और रोचक बना दिया है।

• SWAYAM, DIKSHA, BYJU’S, Unacademy जैसे प्लेटफॉर्म लाखों छात्रों को सुविधा दे रहे हैं।

• उच्च शिक्षा में IIT, IIM, AIIMS, IISc जैसे संस्थान भारत की पहचान बन चुके हैं।

👉 शिक्षा अब केवल डिग्री पाने तक सीमित नहीं, बल्कि नवाचार, कौशल और रोजगार सृजन पर केंद्रित हो रही है।

 निष्कर्ष

भारत की शिक्षा प्रणाली ने गुरुकुल से लेकर डिजिटल क्लास तक का एक लंबा और प्रेरणादायक सफर तय किया है। पहले शिक्षा का लक्ष्य था चरित्र और आत्मज्ञान,फिर यह नौकरी और प्रशासन तक सीमित हुई,और आज इसका उद्देश्य है समग्र विकास, कौशल और नवाचार। समय के साथ शिक्षा की भाषा, पद्धति और साधन बदले हैं, लेकिन इसका असली मकसद हमेशा वही रहा है –

👉 एक अच्छे इंसान का निर्माण और समाज को आगे बढ़ा।

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