बिहार चुनाव में NDA के जीतने के प्रमुख कारण ।

बिहार चुनाव में NDA के जीतने के प्रमुख कारण –

बिहार विधानसभा चुनाव में NDA की जीत को कई लोग जनमत का साफ संदेश मान रहे हैं, लेकिन इस जीत के पीछे केवल समर्थन नहीं, बल्कि एक जटिल राजनीतिक रणनीति, विपक्ष की कमजोरियाँ, और सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों की गहरी भूमिका भी छिपी हुई है। यह चुनाव बिहार की राजनीति में एक बार फिर वही पुराना प्रश्न खड़ा करता है—क्या जनता ने विकास के नाम पर वोट दिया है, या विकल्पों की कमी ने NDA को जीत दिलाई है? आइए इस परिणाम का आलोचनात्मक विश्लेषण करते हैं।

1. चुनावी रणनीति की जीत, न कि शासन का जनमत?

पहला बड़ा कारण है NDA की चुनावी रणनीति और प्रबंधन की मजबूती। गठबंधन की पार्टियाँ शुरू से ही एकजुट दिखीं—सीट शेयरिंग, संगठन, प्रचार-प्रबंधन और उम्मीदवार चयन में न्यूनतम विवाद हुआ। यह एक सुविचारित राजनीतिक संचालन था।

लेकिन आलोचना यह भी कहती है कि रणनीति मजबूत होना जनता के असली मुद्दों पर सफलता नहीं होता। बेरोज़गारी, पलायन, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मूल मुद्दे इस चुनाव में पीछे रह गए। वोटिंग में प्रबंधन की भूमिका इतनी अधिक थी कि कई जगह “लोकतांत्रिक विकल्प” की जगह “चुनावी मशीनरी” हावी दिखी।

NDA-Bihar Election 


2. कमजोर और असंगठित विपक्ष—NDA की अप्रत्यक्ष जीत

NDA के जीतने का एक बड़ा कारण खुद विपक्ष की असंगठित और बिखरी हुई राजनीति भी रहा। महागठबंधन जातीय समीकरणों पर तो बोला, लेकिन भविष्य की नीतियों, विकास मॉडल, आर्थिक रोडमैप और प्रशासनिक दृष्टि पर अस्पष्ट रहा।

आलोचनात्मक दृष्टिकोण कहता है कि
“वोट NDA को नहीं, विकल्पहीनता को मिला है।”

विपक्ष युवाओं के लिए बेरोज़गारी पर ठोस प्लान नहीं दे पाया, महिलाओं के लिए स्पष्ट नीति नहीं दे पाया, और ना ही प्रशासनिक स्थिरता पर कोई विश्वसनीय मॉडल प्रस्तुत कर पाया। जनता को लगा—“कमज़ोर प्रतिद्वंद्वी की तुलना में स्थिर गठबंधन बेहतर है।”

इसलिए यह जीत NDA की क्षमता जितनी नहीं, विपक्ष की कमजोरी उतनी ही है।

3. लाभार्थी राजनीति (Welfare Politics) का प्रभाव

पिछले कुछ वर्षों में केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर कई योजनाएँ चलीं—राशन, गैस, आवास, स्वास्थ्य बीमा, पेंशन आदि। इन योजनाओं ने एक मजबूत लाभार्थी वर्ग तैयार किया, जिसने वोटिंग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

समस्या यह है कि आलोचकों के अनुसार—
“लाभार्थी होना विकास नहीं होता।”

लोगों ने योजनाओं के कारण तो समर्थन दिया, लेकिन यह योजनाएँ लोगों की निर्भरता बढ़ाती हैं, उनकी आत्मनिर्भरता नहीं। यह राजनीति की एक नई प्रवृत्ति है, जहाँ “योजनाएँ” वोट दिलाती हैं, न कि “दीर्घकालिक विकास”। यह लोकतंत्र को जनकल्याण से ज्यादा नियंत्रित वोट-बैंक में बदल देती है।

4. महिलाओं का वोट—वास्तविक सशक्तिकरण या राजनीतिक लक्ष्य?

NDA ने महिलाओं को लक्षित कर योजनाएँ चलाईं—स्वास्थ्य, सुरक्षा, शिक्षा और सहायता राशि। महिलाओं का वोट प्रतिशत पुरुषों से अधिक रहा और इसका सीधा फायदा NDA को मिला।

लेकिन आलोचनात्मक दृष्टिकोण यह प्रश्न उठाता है—

क्या महिला सुरक्षा, रोजगार, और सामाजिक स्वतंत्रता वाकई मजबूत हुई है, या सिर्फ योजनाओं ने एक “धारणा” बनाई है?

ग्राउंड रिपोर्ट बताती है कि महिलाओं में भरोसा तो बढ़ा है, लेकिन वास्तविक सुरक्षा, रोजगार के अवसर और सामाजिक बराबरी अभी भी चुनौती है। यानी वोट नीति पर नहीं, नीति के वादे पर मिला।

5. जातीय समीकरण—बदलाव कम, नियंत्रण अधिक

बिहार की राजनीति जाति आधारित रही है। NDA ने इस बार अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC), पिछड़ा वर्ग (OBC), और दलित समुदायों को संतुलित करने की रणनीति अपनाई। यह कदम प्रभावी रहा।

लेकिन आलोचनात्मक नजरिया कहता है कि यह बदलाव की राजनीति नहीं, बल्कि
“जाति समीकरणों का अधिक चतुर प्रबंधन” था।

जाति आधारित वोटिंग अब भी बिहार में निर्णायक है। NDA ने पुराने समीकरण नहीं बदले, बस उन्हें नए ढंग से व्यवस्थित किया। यह सामाजिक प्रगति का संकेत नहीं, बल्कि जाति आधारित राजनीति का ही नया रूप है।

6. ‘जंगल राज’ का भय—वोट भावनाओं पर, न कि तर्क पर

NDA के प्रचार में एक बड़ा तत्व था—“पुराने समय का जंगलराज लौट आएगा।” यह एक भावनात्मक डर था जिसने ग्रामीण मतदाताओं पर गहरा असर डाला।

समस्या यह है कि
डर का इस्तेमाल राजनीति को भावनात्मक बना देता है।

इसके कारण जनता वास्तविक मुद्दों—रोज़गार, स्कूल, अस्पताल, कारोबार—को पीछे छोड़ देती है। डर आधारित अभियान लोकतंत्र को मजबूत नहीं, बल्कि कमजोर करता है।

7. चुनाव प्रबंधन बनाम वास्तविक विकास—अंतर साफ है

अगर चुनावी वादों, घोषणाओं, और प्रचार को हटाकर देखें तो…

  • बेरोज़गारी कम नहीं हुई

  • पलायन आज भी बड़ी समस्या है

  • स्कूलों की हालत कई जिलों में खराब है

  • स्वास्थ्य ढाँचा महामारी के बाद भी कमजोर है

  • उद्योग और निवेश अब भी सीमित हैं

इसलिए आलोचकों का कहना है—

“जीत विकास की नहीं, चुनाव प्रबंधन की है।”

NDA का प्रचार मजबूत था, संगठन शक्तिशाली था, और विपक्ष कमजोर—इस संयोजन ने परिणाम बना दिया।


Post a Comment

और नया पुराने