भारत का Welfare State कितनी दूर है?
भारत का संविधान जब 1950 में लागू हुआ, तभी देश ने खुद को एक “Welfare State” यानी कल्याणकारी राज्य घोषित कर दिया था। यह विचार केवल एक राजनीतिक घोषणा नहीं था, बल्कि एक नैतिक व सामाजिक प्रतिबद्धता थी। इसका अर्थ था कि राज्य हर नागरिक को जीवन की बुनियादी ज़रूरतें—शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सुरक्षा और सम्मान—उपलब्ध कराएगा। लेकिन 75 साल से ज़्यादा समय बीत जाने के बाद भी यह सवाल आज भी उतना ही प्रासंगिक है: क्या भारत सच में Welfare State बन पाया है, या अभी भी हम उस लक्ष्य से दूर खड़े हैं?
इस प्रश्न का उत्तर आसान नहीं, क्योंकि भारत की यात्रा कई स्तरों पर प्रगति और कई स्तरों पर संघर्ष के बीच झूलती रही है।
भारत ने Welfare State बनाने की दिशा में कितना सफर तय किया है?
यदि हम केवल सरकारी योजनाओं को देखें, तो दुनिया में शायद भारत से बड़ा कोई कल्याणकारी तंत्र नहीं है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) से लेकर Ayushman Bharat, PM Kisan, PM Awas, Ujjwala Yojana, Jal Jeevan Mission और MGNREGA—ये सभी नीतियाँ यह सिद्ध करती हैं कि भारत ने समाज के कमजोर वर्गों को मजबूत करने के लिए विशाल प्रयास किए हैं। विशेष रूप से पिछले दो दशकों में लक्षित सब्सिडी, सीधे खाते में लाभ (DBT) और डिजिटल आधारभूत ढांचे ने Welfare Governance को एक नए स्तर पर पहुंचाया है।
गरीबी में कमी भी इसका प्रमाण है। Multidimensional Poverty Index के अनुसार, भारत ने 15 वर्ष में लगभग 41 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाया है। यह परिवर्तन किसी भी बड़े विकासशील देश के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
लेकिन दूसरी तरफ, Welfare State केवल योजनाओं की संख्या से नहीं, बल्कि नागरिकों की वास्तविक जीवन गुणवत्ता से तय होता है। और इस पैमाने पर भारत की तस्वीर थोड़ी मिश्रित दिखाई देती है। योजना delivered हो जाना और वास्तविक जीवन में स्थायी बदलाव आ जाना—दो अलग बातें हैं। यही वह क्षेत्र है जहाँ भारत अभी संघर्षरत है।
स्वास्थ्य व्यवस्था: Welfare State की सबसे कमजोर कड़ी
किसी भी Welfare State का हृदय उसकी स्वास्थ्य व्यवस्था मानी जाती है। दुर्भाग्यवश भारत इस क्षेत्र में लंबे समय से पिछड़ा हुआ है। अभी भी भारत स्वास्थ्य पर कुल GDP का लगभग 2% ही खर्च करता है, जो न केवल दुनिया की तुलना में बल्कि अपनी जनसंख्या के अनुपात में भी काफी कम है। ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों, दवाओं, अस्पतालों और emergency services की भारी कमी है।
Ayushman Bharat जैसी योजना ने गरीबों को इलाज का आर्थिक सुरक्षा कवच दिया है, लेकिन जब आधारभूत अस्पताल या विशेषज्ञ डॉक्टर ही उपलब्ध न हों, तो बीमा कार्ड से भी इलाज पूरा नहीं हो पाता।
जब तक भारत अपनी health spending को दुगना—और आदर्श रूप से तिगुना—नहीं करेगा, तब तक Welfare State की यात्रा अधूरी रहेगी।
शिक्षा: संख्या में आगे, गुणवत्ता में पीछे
भारत ने स्कूल enrollment के मामले में बहुत प्रगति की है। आज लगभग हर बच्चा प्राथमिक स्तर पर स्कूल जाता है। लेकिन समस्या सीखने के स्तर में है। ASER रिपोर्ट बताती है कि कक्षा 5 के कई बच्चे कक्षा 2 के स्तर का पाठ भी नहीं पढ़ पाते। यह शिक्षा व्यवस्था की जड़ों में कमजोरी दिखाती है।
Welfare State का असली अर्थ केवल ‘school जाना’ नहीं, बल्कि सक्षम, समझदार और productive नागरिक तैयार करना है।
यदि शिक्षा की गुणवत्ता कमजोर रहेगी तो गरीब परिवार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक वही सामाजिक और आर्थिक चुनौतियाँ झेलते रहेंगे।
शिक्षा में गुणवत्ता सुधार—अध्यापकों का प्रशिक्षण, आधुनिक पाठ्यक्रम, डिजिटल संसाधन—Welfare State की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है।
रोज़गार: Welfare State का आधार
एक आदर्श Welfare State वह नहीं होता जो केवल सहायता बाँटे, बल्कि वह होता है जो नागरिकों को स्वावलंबी बनाता है।
भारत की लगभग 90% कामगार आबादी अभी भी informal sector में है—जहाँ न नौकरी की सुरक्षा है, न सामाजिक सुरक्षा, न पेंशन, न स्वास्थ्य कवर।
सरकार योजनाएँ दे सकती है, लेकिन स्थायी कल्याण तभी बनता है जब नागरिक नियमित, सुरक्षित और सम्मानजनक रोजगार से जुड़ें।
Skill development, manufacturing, rural industries, MSME reforms और digital-skills—इन सब पर निवेश भारत को Asli Welfare State की ओर ले जाएगा।
असमानता—कल्याणकारी राज्य के रास्ते की दीवार
भारत की अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ी है, लेकिन आय और अवसरों की असमानता में भी जोरदार वृद्धि हुई है। एक तरफ छोटे शहरों का युवा नौकरी के लिए संघर्ष करता है, दूसरी तरफ बड़े शहरों में तेज़ी से संपत्ति और आय का संकेंद्रण बढ़ रहा है।
जब समाज में असमानता बहुत अधिक होती है, तो Welfare State की भावना कमजोर पड़ जाती है। क्योंकि कल्याण का उद्देश्य ही यही है कि हर नागरिक को समान अवसर मिलें।
इसलिए भारत को कर-प्रणाली, सामाजिक सुरक्षा, ग्रामीण औद्योगिकीकरण और शिक्षा तक समान पहुंच सुनिश्चित करनी होगी।
भारत एक Partial Welfare State—पूरा नहीं
सभी आंकड़ों, योजनाओं और नीतियों के बावजूद यह स्वीकार करना होगा कि भारत अभी एक Partial Welfare State की स्थिति में है।
यानी हम लक्ष्य के करीब पहुँचे हैं, लेकिन अभी अंदर प्रवेश नहीं कर पाए।
भारत के पास Welfare Infrastructure है—
लेकिन अभी Welfare Outcomes कमजोर हैं।
सरल शब्दों में कहें तो:
हमारे पास योजनाएँ बहुत हैं, लेकिन स्वास्थ्य, शिक्षा, रोज़गार और समानता जैसे स्तंभ अभी मजबूत नहीं हैं।
आने वाले 10–15 साल निर्णायक क्यों हैं?
अनुमान है कि 2030–2040 का दशक भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण होगा। इस दौरान देश की युवा आबादी अपनी उच्चतम संख्या पर होगी।
यदि इस युवा शक्ति को—
• गुणवत्तापूर्ण शिक्षा
• स्वास्थ्य सुरक्षा
• रोजगार
• कौशल
• और सामाजिक सुरक्षा—
मिल गई, तो भारत को Welfare State बनने से कोई नहीं रोक सकता।
लेकिन यदि यह ऊर्जा बेरोज़गारी, गरीबी, असमानता और कमजोर शिक्षा प्रणाली में फँस गई, तो चुनौती और गहरी हो जाएगी।
Welfare State के लिए भारत को क्या बदलना होगा?
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स्वास्थ्य पर खर्च 4–5% GDP तक बढ़ाना
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स्कूल शिक्षा में learning outcomes सुधारना
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Formal रोजगार बढ़ाना
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Universal Social Security लागू करना
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ग्रामीण–शहरी असमानता कम करना
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AI, automation और नई तकनीकों के लिए youth को तैयार करना
इन सभी कदमों के साथ भारत न केवल Welfare State बनेगा, बल्कि दुनिया के सबसे स्थिर और मजबूत समाजों में शामिल हो सकता है।
निष्कर्ष: भारत कितना दूर है?
भारत ने Welfare State बनने की दिशा में लंबी यात्रा कर ली है।
गरीबी में कमी, सामाजिक योजनाएँ, डिजिटल गवर्नेंस और लोकतांत्रिक ढाँचा—इन सभी ने हमें लक्ष्य के करीब ला दिया है।
लेकिन स्वास्थ्य, शिक्षा, रोज़गार और असमानता की चुनौतियाँ अभी भी हमें उस आदर्श से दूर रखती हैं।
एक वाक्य में निष्कर्ष:
“भारत Welfare State के द्वार पर खड़ा है, लेकिन अंदर प्रवेश के लिए उसके चार स्तंभ—स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और समानता—अभी भी मजबूत नहीं हुए।”
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