लोकतंत्र की जड़ें: प्राचीन ग्रीस से आधुनिक भारत तक
लोकतंत्र आज दुनिया की सबसे लोकप्रिय शासन प्रणाली मानी जाती है, लेकिन इसकी जड़ें बहुत गहरी और प्राचीन हैं। जब हम लोकतंत्र की उत्पत्ति की बात करते हैं तो सबसे पहले प्राचीन ग्रीस का नाम आता है। लगभग पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में एथेंस नगर-राज्य में “डेमोक्रेसिया” की अवधारणा उभरी, जिसका अर्थ था "जनता का शासन"। यहाँ नागरिक सीधे निर्णय-निर्माण में भाग लेते थे। हालांकि यह लोकतंत्र सीमित था, क्योंकि इसमें केवल पुरुष नागरिक शामिल होते थे, महिलाएँ, दास और विदेशी इसमें भाग नहीं ले सकते थे। फिर भी, यह दुनिया में पहली बार था जब शासन को जनता से जोड़ने का प्रयास किया गया।
ग्रीक परंपरा के बाद रोम साम्राज्य में भी एक गणराज्य का रूप देखने को मिला। वहाँ "सीनेट" और "कौंसल" जैसी संस्थाएँ बनीं, जिन्होंने नागरिकों की भागीदारी को नया आयाम दिया। यद्यपि समय के साथ रोम में तानाशाही बढ़ी और सम्राटों ने सत्ता हथिया ली, लेकिन "रोमन रिपब्लिक" की स्मृति ने यूरोप के राजनीतिक चिंतन पर गहरा असर डाला।
भारत में भी लोकतांत्रिक परंपराओं का अपना अनोखा इतिहास रहा है। वैदिक काल से ही "सभा" और "समिति" जैसी संस्थाएँ मौजूद थीं, जिनमें जनप्रतिनिधि विचार-विमर्श करते थे। बाद में बौद्ध काल में लिच्छवि गणतंत्र का उदाहरण सामने आता है, जिसे कई इतिहासकार लोकतांत्रिक परंपरा का एक रूप मानते हैं। इन गणराज्यों में सामूहिक निर्णय-प्रक्रिया और जनता की सहमति पर जोर दिया जाता था। इसका अर्थ है कि भारत की भूमि पर भी लोकतंत्र का बीजारोपण बहुत पुराना है।
मध्ययुगीन काल में यूरोप में सामंतवाद और चर्च का दबदबा बढ़ा, लेकिन पुनर्जागरण और प्रबोधन (Enlightenment) काल ने लोकतंत्र को फिर से जीवित किया। ब्रिटेन में 1215 की मैग्ना कार्टा ने राजा की शक्तियों को सीमित कर संसद की भूमिका को मजबूत किया। फ्रांस में 1789 की क्रांति ने “स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व” के आदर्शों को जन्म दिया, जबकि अमेरिका की स्वतंत्रता संग्राम ने “जनता के द्वारा, जनता के लिए” शासन की धारणा को स्थापित किया। इन क्रांतियों ने आधुनिक लोकतंत्र की नींव रखी, जिसे आगे चलकर दुनिया के अन्य हिस्सों ने भी अपनाया।
बीसवीं सदी में लोकतंत्र का सबसे बड़ा प्रयोग भारत में हुआ। 1947 में आज़ादी के बाद भारतीय नेताओं ने सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार पर आधारित लोकतंत्र को अपनाया। यह निर्णय अभूतपूर्व था, क्योंकि उस समय दुनिया में बहुत कम देशों ने सभी वयस्क नागरिकों को, चाहे उनका लिंग, जाति या संपत्ति कुछ भी हो, वोट देने का अधिकार दिया था। संविधान सभा ने इस व्यवस्था को लागू किया और भारत आज दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलाता है। यहाँ हर पाँच साल में करोड़ों लोग अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं और सरकार बनाते हैं।
भारतीय लोकतंत्र की विशेषता यह है कि यह विविधताओं से भरे समाज में काम कर रहा है। इतनी भाषाएँ, धर्म, जातियाँ और संस्कृतियाँ होने के बावजूद लोकतंत्र ने देश को एकजुट रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं—भ्रष्टाचार, जातीय राजनीति और धनबल का असर चुनावों पर साफ दिखाई देता है—लेकिन फिर भी भारत का लोकतांत्रिक ढांचा लगातार टिकाऊ और मजबूत साबित हुआ है।
आज जब हम लोकतंत्र की यात्रा को देखते हैं तो स्पष्ट होता है कि यह केवल एक राजनीतिक व्यवस्था नहीं है, बल्कि एक निरंतर विकसित होती विचारधारा है। ग्रीस के सीमित नागरिक लोकतंत्र से लेकर भारत के व्यापक वयस्क मताधिकार तक, लोकतंत्र ने लंबा सफर तय किया है। इसकी जड़ें कहीं गहरी ऐतिहासिक परंपराओं में हैं तो कहीं आधुनिक संघर्षों और क्रांतियों में। यही कारण है कि लोकतंत्र को अक्सर "एक अधूरा प्रयोग" कहा जाता है, जो समय के साथ और परिपक्व होता चला जाता है।
लोकतंत्र की इस यात्रा से हमें यह सीख मिलती है कि जनता की भागीदारी, पारदर्शिता और समान अधिकार ही किसी भी शासन प्रणाली की स्थिरता और सफलता का आधार होते हैं। जब तक नागरिक जागरूक रहेंगे और सत्ता को चुनौती देते रहेंगे, तब तक लोकतंत्र जीवित रहेगा। ग्रीस से भारत तक की यह कहानी हमें याद दिलाती है कि लोकतंत्र केवल शासन की व्यवस्था नहीं है, बल्कि यह एक जीवनशैली है—जिसमें स्वतंत्रता, समानता और न्याय का सपना बसता है।
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