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दासता की शुरुआत कब और कैसे हुई?

दासता की शुरुआत कब और कैसे हुई? – एक ऐतिहासिक विश्लेषण

दासता (Slavery/दास प्रथा) की शुरुआत कब और कैसे हुई? प्राचीन सभ्यताओं से लेकर भारत, यूरोप और अमेरिका तक दास प्रथा का इतिहास, कारण और इसका अंत। पूरा विवरण इस ब्लॉग में पढ़ें।

दासता क्या है?

दासता का अर्थ है किसी व्यक्ति को उसकी स्वतंत्रता से वंचित करके संपत्ति की तरह खरीदना-बेचना और उससे जबरन काम करवाना। इतिहास में दासों को कोई अधिकार नहीं दिया जाता था, वे पूरी तरह मालिक के अधीन रहते थे।

(दास प्रथा)

दासता की शुरुआत – प्रारंभिक सभ्यताएँ

मेसोपोटामिया (3000 ईसा पूर्व): युद्धबंदी और गरीब लोग दास बनाए जाते थे।

(मेसोपोटामिया में दासता)

मिस्र (Egypt): पिरामिड और खेती के कामों में दासों का उपयोग।

यूनान और रोम: यहाँ दासों को "जीवित औजार" कहा जाता था। रोम में दासों की संख्या कभी-कभी नागरिकों से भी अधिक होती थी।

भारत में दासता का इतिहास

 *वैदिक काल से ही दास प्रथा का उल्लेख मिलता है।

*मनुस्मृति और अर्थशास्त्र में दासों की श्रेणियाँ और उनके कर्तव्य बताए गए हैं।

*दिल्ली सल्तनत और मुगल काल में दास मंडी तक लगती थी।

* इल्तुतमिश स्वयं दास से सुल्तान बना था।

यूरोप और अमेरिका में दास प्रथा

* 15वीं शताब्दी से यूरोपीय उपनिवेशवादियों ने अफ्रीका से लाखों लोगों को पकड़कर अमेरिका और यूरोप भेजा। इसे Atlantic Slave Trade (अटलांटिक दास व्यापार) कहा जाता है।

(अमेरिका में दासता)


* अफ्रीकी दासों से बागानों, खानों और खेतों में अमानवीय परिस्थितियों में काम करवाया गया।

दासता का विरोध और समाप्ति

* 18वीं–19वीं शताब्दी में मानवाधिकार आंदोलन ने दासता को चुनौती दी।

* अमेरिका (1865) – गृहयुद्ध के बाद दास प्रथा खत्म।

* भारत (1843) – अंग्रेजों ने दास प्रथा समाप्त की।

 आधुनिक युग में दासता के नए रूप

हालाँकि कानूनी रूप से दास प्रथा आज समाप्त हो चुकी है, लेकिन आधुनिक समय में यह कई रूपों में अभी भी मौजूद है –

* मानव तस्करी (Human Trafficking)

* जबरन मजदूरी (Forced Labour)

* बाल मजदूरी (Child Labour)

 निष्कर्ष

दासता की शुरुआत सभ्यता के प्रारंभिक दौर से हुई और यह हजारों सालों तक समाज का हिस्सा बनी रही। आज यह कानूनी रूप से समाप्त है, लेकिन इसके आधुनिक रूप अब भी समाज को चुनौती दे रहे हैं। इसलिए हमें मिलकर जागरूकता फैलानी होगी ताकि मानवता को फिर से किसी भी प्रकार की दासता का शिकार न होना पड़े।

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