लोकतंत्र की असली ताकत उसकी जनता के प्रति जवाबदेही में है। जवाबदेही तभी संभव है जब सत्ता में बैठे नेताओं को बार-बार जनता के सामने लौटना पड़े। लेकिन जब कोई नेता लगातार सत्ता में बना रहता है, तो लोकतंत्र धीरे-धीरे कमजोर होने लगता है। यही कारण है कि कई देशों ने अपने संविधान में टर्म-लिमिट (कार्यकाल सीमा) का प्रावधान किया है।
सवाल यह है कि क्या वास्तव में टर्म-लिमिट लोकतंत्र को बचा सकती है? और यदि हाँ, तो किन परिस्थितियों में यह सबसे प्रभावी साबित होती है?
टर्म-लिमिट का मतलब क्या है?
टर्म-लिमिट का सीधा अर्थ है — कोई व्यक्ति एक निश्चित समय (जैसे 2 कार्यकाल या 10 वर्ष) से अधिक सत्ता पर काबिज़ नहीं रह सकता।
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अमेरिका में राष्ट्रपति केवल दो कार्यकाल (8 वर्ष) तक ही पद पर रह सकता है।
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कई अफ्रीकी और एशियाई देशों ने भी यह सीमा लागू की है, हालांकि कई जगह बाद में संशोधन करके इसे हटा दिया गया।
क्यों ज़रूरी है टर्म-लिमिट?
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सत्ता का संतुलन बनाए रखना
जब एक ही नेता लगातार सत्ता में रहता है तो संस्थाएँ उसकी पकड़ में आ जाती हैं। टर्म-लिमिट सत्ता के केंद्रीकरण को रोकती है। -
भ्रष्टाचार पर अंकुश
लंबे समय तक सत्ता से चिपके रहने वाले नेताओं में भ्रष्टाचार और संसाधन-दुरुपयोग की संभावना बढ़ जाती है। सीमित कार्यकाल भ्रष्टाचार की गुंजाइश कम करता है। -
नए नेतृत्व के लिए रास्ता खुलना
लोकतंत्र की खूबसूरती यही है कि जनता बार-बार नए नेतृत्व को परखे। टर्म-लिमिट यह सुनिश्चित करती है कि नई सोच और नई ऊर्जा सत्ता में आए। -
उत्तराधिकार संकट से बचाव
यदि नेता लंबे समय तक सत्ता में रहता है और अचानक चला जाए, तो देश में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ जाती है। टर्म-लिमिट नियमित परिवर्तन सुनिश्चित करती है।
टर्म-लिमिट के सफल उदाहरण
1. अमेरिका
अमेरिका में 1951 में 22वां संशोधन (22nd Amendment) लागू किया गया, जिसने राष्ट्रपति के लिए दो कार्यकाल की सीमा तय की। इसका सीधा लाभ यह हुआ कि वहां कभी कोई नेता अनिश्चितकाल तक सत्ता में नहीं रह पाया। इससे संस्थाएँ मजबूत और स्वतंत्र बनीं।
2. मेक्सिको
मेक्सिको में राष्ट्रपति केवल एक कार्यकाल (6 वर्ष) के लिए चुना जाता है और दुबारा चुनाव नहीं लड़ सकता। इस व्यवस्था ने वहां सत्ता के केंद्रीकरण को रोका है, हालांकि कई अन्य चुनौतियाँ (जैसे भ्रष्टाचार और अपराध) बनी हुई हैं।
3. नाइजीरिया और घाना
कई अफ्रीकी देशों ने लंबे समय तक चले तानाशाही दौर से सबक लेते हुए कार्यकाल सीमाएँ लागू कीं। इससे लोकतांत्रिक परंपरा मजबूत हुई और सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण की संस्कृति बनी।
जहाँ टर्म-लिमिट कमजोर पड़ी
1. रूस
रूस में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने संविधान में संशोधन कर कार्यकाल सीमा को अपने पक्ष में ढाल लिया। इससे वे 2036 तक राष्ट्रपति बने रह सकते हैं। यहाँ टर्म-लिमिट का प्रावधान होते हुए भी उसका पालन नहीं हुआ।
2. चीन
2018 में चीन ने राष्ट्रपति के लिए कार्यकाल सीमा खत्म कर दी। इसका मतलब है कि शी जिनपिंग अनिश्चितकाल तक सत्ता में रह सकते हैं। यह बदलाव लोकतंत्र की बजाय सत्ता केंद्रीकरण का उदाहरण है।
3. अफ्रीका के कुछ देश
युगांडा, रवांडा, कैमरून जैसे देशों में नेताओं ने टर्म-लिमिट हटाकर दशकों तक सत्ता संभाली। इससे लोकतांत्रिक संस्थाएँ कमजोर हो गईं और विपक्ष लगभग निष्प्रभावी हो गया।
टर्म-लिमिट के खिलाफ तर्क
कुछ विद्वानों और नीति-निर्माताओं का मानना है कि टर्म-लिमिट हमेशा फायदेमंद नहीं होती:
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नीतियों की निरंतरता टूटती है – यदि कोई नेता लोकप्रिय और सफल हो तो उसका हटना नुकसानदेह हो सकता है।
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अनुभवी नेतृत्व का अभाव – बार-बार बदलाव से स्थिरता कम हो सकती है।
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कृत्रिम सीमा – कभी-कभी जनता चाहकर भी अपने पसंदीदा नेता को दोबारा चुन नहीं पाती।
संतुलित दृष्टिकोण
असल सवाल यह नहीं है कि टर्म-लिमिट होनी चाहिए या नहीं, बल्कि यह है कि क्या संस्थाएँ इतनी मजबूत हैं कि नियम का पालन हो सके।
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अगर न्यायपालिका, चुनाव आयोग और मीडिया स्वतंत्र हों, तो टर्म-लिमिट लोकतंत्र को बहुत मजबूत बनाती है।
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अगर संस्थाएँ कमजोर हैं और नेता ही नियम बदल दे, तो टर्म-लिमिट बेकार साबित होती है।
भारत और टर्म-लिमिट पर बहस
भारत में प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के लिए कोई टर्म-लिमिट नहीं है। कोई नेता तब तक पद पर रह सकता है जब तक उसकी पार्टी चुनाव जीतती रहे।
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इसके फायदे: जनता के पास बार-बार वोट देकर चुनने का अधिकार है।
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नुकसान: अगर संस्थाएँ कमजोर हों, तो एक ही नेता दशकों तक सत्ता में रह सकता है और संतुलन टूट सकता है।
भारत में यह बहस बार-बार उठती है कि क्या प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों के लिए भी टर्म-लिमिट तय की जानी चाहिए।
निष्कर्ष
टर्म-लिमिट लोकतंत्र की गारंटी नहीं है, लेकिन यह लोकतंत्र को बचाने का एक महत्वपूर्ण औज़ार है।
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जहाँ संस्थाएँ मजबूत हैं (जैसे अमेरिका), वहां टर्म-लिमिट लोकतंत्र को सशक्त बनाती है।
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जहाँ संस्थाएँ कमजोर हैं (जैसे रूस, चीन, कैमरून), वहां नेता इसे बदलकर सत्ता से चिपक जाते हैं।
इसलिए असली समाधान यह है कि टर्म-लिमिट के साथ-साथ संस्थाओं को भी मजबूत किया जाए। तभी लोकतंत्र जीवित और सक्रिय रह सकता है।

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