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अफ्रीकी तानाशाह: जब सत्ता बन जाती है जीवनभर का सौदा


लोकतंत्र का मतलब केवल चुनाव कराना नहीं है, बल्कि यह सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण और जनता की भागीदारी पर आधारित है। लेकिन अफ्रीका के कई देशों में सत्ता एक जीवनभर का सौदा बन चुकी है। नेता चुनाव जीतने या हारने से ऊपर उठकर खुद को हमेशा के लिए सत्ता पर काबिज़ कर लेते हैं। युगांडा, जिम्बाब्वे और इक्वेटोरियल गिनी इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं।


अफ्रीका और सत्ता की राजनीति

अफ्रीका महाद्वीप ने औपनिवेशिक शासन से मुक्ति पाई थी लोकतंत्र और विकास की उम्मीदों के साथ। परंतु कई जगह यह उम्मीद तानाशाही में बदल गई। कारण रहे –

  • कमजोर संस्थाएँ

  • जातीय विभाजन

  • भ्रष्टाचार

  • सत्ता का लालच

परिणाम यह हुआ कि वहाँ के कई नेता सत्ता में आने के बाद कुर्सी छोड़ने का नाम नहीं लेते।

युगांडा: योवेरी मुसेवेनी का अंतहीन शासन

सत्ता में आने की कहानी

योवेरी मुसेवेनी 1986 में सत्ता में आए। शुरू में उन्होंने जनता से वादा किया था कि वे लोकतंत्र बहाल करेंगे और लंबे समय तक पद पर नहीं रहेंगे।

वास्तविकता

  • लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने संविधान बदलकर कार्यकाल की सीमा हटा दी।

  • 2005 में राष्ट्रपति कार्यकाल की सीमा खत्म कर दी गई।

  • 2017 में उम्र की सीमा (75 वर्ष) भी हटवा दी।

नतीजा

आज मुसेवेनी 35 साल से अधिक समय से सत्ता पर काबिज़ हैं।
लोकतंत्र नाम का है, लेकिन चुनाव केवल औपचारिकता रह गए हैं। विपक्षी नेताओं को दबाया जाता है, मीडिया पर नियंत्रण है और जनता को असली विकल्प नहीं मिलता।

जिम्बाब्वे: रॉबर्ट मुगाबे का अंतहीन सफर

शुरुआत

रॉबर्ट मुगाबे 1980 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से मुक्ति के बाद जिम्बाब्वे के पहले प्रधानमंत्री बने। बाद में राष्ट्रपति बने और लगभग 37 साल (1980–2017) तक सत्ता में रहे।

सत्ता का तरीका

  • शुरुआती वर्षों में उन्हें स्वतंत्रता सेनानी और नायक माना गया।

  • लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने विपक्ष को दबाना शुरू किया।

  • चुनावी धांधली और हिंसा आम बात बन गई।

  • आर्थिक नीतियों की गलतियों ने देश को भुखमरी और महंगाई के दलदल में धकेल दिया।

अंत

2017 में सेना ने विद्रोह किया और मुगाबे को पद छोड़ना पड़ा। यह दिखाता है कि जब सत्ता लंबे समय तक एक ही व्यक्ति के हाथ में रहती है तो लोकतंत्र और अर्थव्यवस्था दोनों का पतन होता है।

इक्वेटोरियल गिनी: तेओडोरो ओबियांग का “जीवनभर का सौदा”

सत्ता में आने का तरीका

1979 में तेओडोरो ओबियांग ने अपने चाचा को तख़्तापलट में हटाकर सत्ता हासिल की। तब से लेकर अब तक (40+ साल) वे लगातार राष्ट्रपति बने हुए हैं।

शासन की हकीकत

  • वे दुनिया के सबसे लंबे समय तक सत्ता में रहने वाले नेताओं में से एक हैं।

  • चुनाव होते हैं लेकिन हमेशा वे ही विजयी घोषित किए जाते हैं।

  • विपक्ष लगभग नगण्य है और सत्ता का पूरा ढांचा परिवार व करीबी लोगों के इर्द-गिर्द घूमता है।

विरोधाभास

इक्वेटोरियल गिनी तेल संसाधनों से समृद्ध है, लेकिन जनता आज भी गरीबी में जी रही है। इसका कारण है भ्रष्टाचार और संसाधनों का गलत वितरण।

ऐसे लंबे शासन से लोकतंत्र पर क्या असर पड़ता है?

  1. संस्थाओं का क्षरण
    जब नेता दशकों तक सत्ता पर रहते हैं तो संसद, न्यायपालिका और मीडिया स्वतंत्र नहीं रह पाते।

  2. विपक्ष का खात्मा
    विपक्षी दल या तो प्रतिबंधित कर दिए जाते हैं या दबा दिए जाते हैं।

  3. भ्रष्टाचार का बढ़ना
    सत्ता केंद्रीकृत होने से संसाधनों का दुरुपयोग बढ़ता है।

  4. आर्थिक संकट
    जैसे जिम्बाब्वे में महंगाई ने पूरी अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया।

  5. जनता की चुप्पी
    डर और दमन के कारण लोग विरोध करने से कतराते हैं, जिससे तानाशाह और मजबूत होता जाता है।

क्या केवल अफ्रीका में ही यह समस्या है?

नहीं।

  • रूस में पुतिन,

  • चीन में शी जिनपिंग,

  • तुर्की में एर्दोआन,

  • बेलारूस में लुकाशेंको –

ये सब उदाहरण बताते हैं कि सत्ता का लंबा केंद्रीकरण केवल अफ्रीका तक सीमित नहीं है। फर्क इतना है कि अफ्रीका में संस्थाएँ बहुत कमजोर होने के कारण यह और गहरा संकट बन जाता है।

समाधान: लोकतंत्र कैसे बचे?

  1. टर्म-लिमिट का पालनकार्यकाल की स्पष्ट सीमा तय हो और उसे बदला न जा सके।

  2. संस्थाओं की मजबूतीचुनाव आयोग, न्यायपालिका और मीडिया को स्वतंत्र बनाया जाए।

  3. अंतरराष्ट्रीय दबाव जब घरेलू स्तर पर बदलाव संभव न हो तो वैश्विक मंच से लोकतांत्रिक दबाव जरूरी है।

  4. जनता की जागरूकताअसली ताकत जनता की है; जब लोग सवाल पूछेंगे तभी लोकतंत्र जीवित रहेगा।

निष्कर्ष

युगांडा के मुसेवेनी, जिम्बाब्वे के मुगाबे और इक्वेटोरियल गिनी के ओबियांग इस बात के प्रतीक हैं कि जब सत्ता जीवनभर का सौदा बन जाए तो लोकतंत्र खोखला हो जाता है। अफ्रीका की यह कहानी केवल उसी महाद्वीप तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरी दुनिया के लिए चेतावनी है।
लोकतंत्र तभी बचेगा जब सत्ता का हस्तांतरण नियमित, पारदर्शी और जनता की इच्छा के अनुरूप होगा। वरना लोकतंत्र केवल नाम का रह जाएगा और असल में वह तानाशाही का आवरण बन जाएगा।


                  ........ समाप्त..........


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